३४५ ॥ श्री राघौ दास जी ॥
(अवध वासी)
चौपाई:-
संतन की सेवा कछु कीन्हा। सुमिरन पाठ में कम मन दीन्हा।१।
प्रभु कृपा करि हरि पुर दयऊ। निरखत आनँद तन मन भयऊ।२।
राघौदास कहैं सुनि लीजै। तन मन प्रेम से सुमिरन कीजै।३।
(अवध वासी)
चौपाई:-
संतन की सेवा कछु कीन्हा। सुमिरन पाठ में कम मन दीन्हा।१।
प्रभु कृपा करि हरि पुर दयऊ। निरखत आनँद तन मन भयऊ।२।
राघौदास कहैं सुनि लीजै। तन मन प्रेम से सुमिरन कीजै।३।