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३४७ ॥ श्री मधुर अली जी ॥

(अवध वासी)
 

दोहा:-

राम सिया के नित्य मैं, साजौं रूप बनाय।

यही भावना मन बसी, और न मोहिं सोहाय।१।

आसन पर बैठारि के, माला गले पिन्हाय।

तन मन प्रेम लगाय के, गान करौं नित भाय।२।

फिर मिष्ठान पवाय के, करौं आरती लाय।

दाया प्रभु मोपर करी हरि पुर दीन पठाय।३।

मधुर अली की बिनय को, सुनिये सब नर नारि।

प्रीति करौ सिय राम से बिगरी देंय सुधारी।४।