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३४९ ॥ श्री सीता शरण जी ॥

(अयोध्या जी)
 

चौपाई:-

राम नाम को सुमिरन कीन्हा। सेवा पूजा में मन दीन्हा।१।

दीन भाव हिरदय में राखा। पढ़ि सुनि रामायण रस चाखा।२।

लाल साहेबै आई दाया। अन्त में हरि पुर मोहिं पठाया।३।

सीता शरण कहैं सुख भारी। बरनि सकै क्या जीभ बिचारी।४।