३५० ॥ श्री लक्ष्मण शरण जी ॥
चौपाई:-
सुमिरेन राम सिया को नामा। पायन अन्त समय हरि धामा।१।
शोभा वहँ की वरनि न जावै। निरखि के तन मन अति सुख पावै।२।
भांति भांति झूला सिंहासन। नर नारिन का तिन पर आसन।३।
लछिमन शरन कहैं हरखाई। सुमिरन करी सो हरि पुर जाई।४।