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३७४ ॥ श्री शंकर दास जी ॥

(अवध वासी)

 

 चौपाई:-

छत्तिस बर्ष मौन ब्रत धारेन। मन ही मन हरि नाम उचारेन।१।

शंकर दास कहैं तन त्यागेन। चढ़ि बिमान हरि पुर को भागेन।२।