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३८९ ॥ श्री जावालि जी ॥


दोहा:-

जावाली कहैं भजन बिन, जीव न होवै पार।

या से हरि सुमिरन करो सब का यही है सार।१।

सुमिरन की बिधि जान लो श्री सतगुरु के द्वार।

लय परकाश औ ध्यान हो रूप धुनी एकतार।२।

तब नर तन का फल मिलै जग से होवौ न्यार।

जियतै में सब जानिये, करि सांचा व्यवहार।३।