३९० ॥ श्री जयन्त जी ॥
चौपाई:-
हरि की शरन गये बिन भाई। नहिं कल्याण सत्य बतलाई।१।
या से कीजै यही उपाई। सुमिरो तन मन प्रेम लगाई।२।
तब फिर ज्ञान भानु दरशाई। सिया राम लछिमन छबि छाई।३।
कहैं जयन्त सुफ़ल तन होवै। सतगुरु करि भजि भय सब खोवै।४।
चौपाई:-
हरि की शरन गये बिन भाई। नहिं कल्याण सत्य बतलाई।१।
या से कीजै यही उपाई। सुमिरो तन मन प्रेम लगाई।२।
तब फिर ज्ञान भानु दरशाई। सिया राम लछिमन छबि छाई।३।
कहैं जयन्त सुफ़ल तन होवै। सतगुरु करि भजि भय सब खोवै।४।