४५६ ॥ श्री अहमक दास जी ॥
पद:-
दीदार हर दम श्याम का सतगुरु बिना होता नहीं।
ध्यान धुनि परकाश लय का बीज जप बोता नहीं।
बासनाओं में फंसा है द्वैत को खोता नहीं।
गर्भ कि इकरार को करि ख्याल ठग रोता नहीं।
शब्द के साबुन से हिरदय का कलुष धोता नहीं।५।
प्रेम तन मन से लगाकर खेत तो जोता नहीं।
पास ही में धन धरा पुरुषार्थ करि ढोता नहीं।
सतगुरु बिना अनमोल मणि क्या पायगा पोता नहीं।
तेरे लिये हरि अगम हैं तू जानता गोता नहीं।
पढ़ि सुनि के टें टें कर रहा पालैंगे प्रभु तोता नहीं।१०।
अब हीं तो करते पाप हौ कहते हौ कुछ होता नहीं।
देखिहौ यमपुर में चलि पल भर कोई सोता नहीं।
अन्धा व बहिरा क्यों बना करि कर्म धन टोता नहीं।
शब्द पर सूरति लगा कर मन को क्यों नोता नहीं।
कपट का संगी बना तू सत्य का ढोता नहीं।१५।
रास्ता चक्कर का है फिरि संग में सोंटा नहीं।
सतसंग करि भक्तों के तू चरण पर लोटा नहीं।
सौदा खरीदा पाप का तुझ सा कोई खोटा नहीं।
बूड़ि हैं मँझधार अहमक कहैं जँह गोटा नहीं।
जाय तू सतगुरु शरन तब होय कोइ कोता नहीं।२०।
दोहा:-
नाम कुदारि से खोदि कै ऊसर देय बहाय।
खेत होय तब एक रस जामैं बीज देखाय।१।
तन मन प्रेम लगाइकै सींचै तब बढ़ि जाय।
बाली लागि कै पकै जब काटि धरै हर्षाय।२।
खाय औ खरचै चुकै नहीं नित प्रति बढ़तै जाय।
सतगुरु से किसनई यह जानि करै दुख जाय।३।
अहमक दास है नाम मम पढ़ा नहीं मैं भाय।
राम नाम सतगुरु दियो सोई मोहिं सोहाय।४।