४५७ ॥ श्री ढपोंगा दास जी ॥
पद:-
सतगुरु बचन का कर भरोसा क्यों फंसा जंजाल में।
राम सीता निरख हरदम क्या धरा जग जाल में।
धुनि ध्यान लय परकाश ले मिट जाय लिखा जो भाल में।
सूरति लगाकर शब्द पर तू मस्त रह उस ख्याल में।
सह दुःख सुख को एक सा राजी तू रह हर हाल में।
कहते ढपोंगादास चलु साकेत माला माल में।६।