४८७ ॥ श्री काले खाँ जी ॥
पद:-
कहता है कालेखां भजै हरि क न निमकहराम है।
जाय कर दोज़ख पड़ै पहिने पशू का जाम है।
बिनु भजन हरि ढिग जाय कैसे बना अधम निकाम है।
मुरशिद मिलै सांचा जिसे सो तो मगन बसु जाम है।
धुनि ध्यान लय परकाश पावै रूप शोभा धाम है।
जियतै में नर तन सुफ़ल हो फिर गर्भ से क्या काम है।६।