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४ ॥ श्री माई कृष्ण कुंवरि ॥

पद:-

भजु मन नाम आठौ पहर।

जाप बिधि सतगुरु से जानो सकै मन तब ठहर।

ध्यान धुनि परकाश लै हो मिटै भव की कहर।

छटा छवि श्रृंगार सीता राम सन्मुख छहर।

देव मुनि नित संघ खेलै उठै आनन्द लहर।५।

 

अन्त तन तजि चलो हरि पुर रहै जस जगफहर।

वचन सुनि नहिं ख्याल करते लगत जैसे जहर।

फेरि तो रोये न चुकिहै होत दिन दिन गहर।८।