८ ॥ श्री ढफाली शाह जी ॥
पद:-
यहाँ तुम्हारा वतन नहीं है ये पाही यारों है चन्द दिन की।
समय न ज़ाया करो यहाँ पर तन मन से कर लेव याद रव की॥
नहीं तो आखिर में जम पकड़ कर चवैंगे जैसे चावल कि किनकी।
उठो कमर कस मुरशिद को ढूंढ़ो रहे हो काहे वृथा में भिनकी।
बता दें मारग चलो उसी पै न देर लागैगि एक छिन की।५।
धुनि ध्यान लै नूर रूप पाकर मिटा दो जियतै में जग कि पिनकी।
नहीं ठेकाना इस दम का कोई फिकिर नहीं तुमको गरभ के रिन की।
कहैं ढफाली मेहनत के आगे न कुछ है मुशकिल ये बात मन की।८।