९ ॥ श्री काबिल शाह जी ॥
पद:-
मुझे नहिं भिस्ति से मतलब न है अब दोज़खै जाना।
भजन करने कि विधि मुरशिद ने बतलाया सो जप ठाना।
समाधी का मिलै सुख क्या नाम धुनि नूर औ ध्याना।
सदा घनश्याम राधे का लखौ सन्मुख में मुसक्याना।
देव मुनि आय दें दरशन होय हँसि हँसि के बतलाना।५।
बजै अनहद मधुर घट में सुनै धुनि हर समय काना।
लगा तन मन करै सुमिरन प्रेम में चूर सो दाना।
कहैं काबिल छुटै तन जब चलै हरि पुर न फिर आना।८।