१० ॥ श्री सूझन शाह जी ॥
पद:-
नाम गर सिध्दि करना है तजो सब पाठ पूजन जी।
करो मुरशिद मिलै मारग छुटै दुनियाँ कि सूजन जी।
जियति कर लेव जब करतल कर्म दोनो कि भूँजन जी।
ध्यान परकाश लै पावो सुनो धुनि नाम गूंजन जी।
खुले नैनन लखौ सिय राम को हँसि हँसि न हो फिर नेक मूंदनि जी।५।
देव मुनि आय दें दरशन करै तन मन से पूजन जी।
बजै अनहद मधुर घट में होय कबहूँ न फूटन जी।
प्रेम करिके छकौ अमृत कहत यह बैन सूझन जी।८।
दोहा:-
फूलै फलै सो झरि गिरै, बरै सो जाय बुताय।
सूझन कह हरि भजन बिन, ऐसै मिलत सजाय।१।
पद:-
फकत मुरशिद के कदमों का जिसे हर दम भरोसा है।२।
उसी के पास में जानो नाम का ठीक तोसा है।
ध्यान धुनि नूर लै पाकर कभी नेकौं न रोसा है।
लखै सिय राम को हरदम किसी को वह न कोसा है।५।
कहैं सूझन जे नहिं चेतैं उन्हैं जम नर्क खोसा है।
जे तन मन प्रेम से लागै उन्हैं पितु मातु पोशा है।७।
पद:-
सिर्फ मुरशिद के कदमों का जिसे हर दम सहारा है।
उसे तुम जान लो यारों राम सीता क प्यारा है।
ध्यान धुनि नूर लै करतल रूप हर दम निहारा है।
सुरति औ शब्द का मारग वो तन मन से सँभारा है।
प्रेम में मस्त क्या कहना देव मुनि संघ खेलारा है।
अन्त तन छोड़ि कह सूझन चलै जग से वो न्यारा है।६।