१२ ॥ श्री बूझन शाह जी ॥
पद:-
साधकों के लिये चुप शान्त रहना ही ज़रूरी है।
नहीं तो हो नहीं सकती कभी उनको सबूरी है।
मानि मुरशिद वचन तन मन से लो नहिं बे सहूरी है।
पास ही है लगा परदा अभी तुम में गरूरी है।
बिना पाये नहीं सुख हो धरी जिमि खाँड़ पूरी है।५।
ध्यान धुनि नूर लै पाकर हटा दो भव यह छूरी है।
राम सीता रहैं सन्मुख सवी जीवन जो मूरी है।
कहैं बूझन समझ तब हो वही मंसूर सूरी है।८।
दोहा:-
मुरशिद की सेवा करो, बूझन कहैं सुनाय।
धुनी ध्यान परकाश लै, रूप सामने छाय।१।