४२ ॥ श्री तीस मार खां जी ॥
पद:-
भूख भवानी भोजन पावै। तब सुमिरन में विघ्न न लावै।१।
नहिं तो मन मति शांति न होवै। दोनो ओर ते मानो खोवै।२।
नर तन का फल जो जन चाहैं। सतगुरु करैं तो पावैं राहैं।३।
तीस मार खां कह समुझाई। चारों फल सो जियतै पाई।४।
दोहा:-
तीस मार खां कहै, जब तीस से होवै न्यार।
तब हरदम सिय राम का, सन्मुख हो दीदार।१।
तीस तीर नहिं जान दे, लिहे फ़ौज विकराल।
धमकी देकर पकरि ले, करै एक ही फाल।२।