५९ ॥ श्री रहेम शाह जी ॥
पद:-
हति जीवन के तन देत बसर नहिं लागत दाया हाय हाय।
वै फटकि फटकि के प्रान तजैं कोइ चिघर रहे मुख वाय वाय।
निज पेट हेत यह पाप करैं ऐड़ात फिरैं मल खाय खाय।
है तिल्फ नहीं हुशियार नहीं हैवान कहैं हम गाय गाय।
जम अन्त समै धुनिहैं उनको करि लाल नैन रिसि लाय लाय।५।
लै जाय के नर्क में गेरि देंय कहैं वास करो दुख पाय पाय।
सतगुरु करि हरि जे नहि सुमिरैं ते आवैं जावैं धाय धाय।
जियतै में करतल जिन कीन्हा छूटी भव जाल की ठांय ठांय।८।
दोहा:-
जोर जवानी का कठिन पूरा है सैतान।
विरलै कोई जन बचैं जिन पायो गुरु ज्ञान॥