९१ ॥ श्री खड़ग दास जी ॥
पद:-
बहुत जन पढ़ि सुनि ह्वै गे निकाम।
पर निन्दा पर धन पर दारा चाहत अधम हराम।
सान मान झूँठी दिखलावत पास में है नहिं दाम।
पांचो चोर संग मन मिलिकर लीन बनाय गुलाम।
सो तो ख्याल नेक नहिं करते चिकनावत हैं चाम।५।
ढोल के भीतर पोल रहत जिमि फूटे हो बेकाम।
मात पिता में फर्क है उनके जैसे वसु औ जाम।
अपजस भार शीश पर लादत अन्त पड़ै जम धाम।
सतगुरु करै फरक मिटि जावै जियति मिलै विश्राम।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख सीता राम।१०।
कमल चक्र नागिन हो सीधी सुर मुनि दर्शैं आम।
कहैं खड़ग दास तन छूटै जावैं अचल मुकाम।१२।