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९२ ॥ श्री अर्जुन सिंह जी ॥


पद:-

अरे मन दीन बन लच लच। बुरे कर्मों से तब बच बच॥

संग हरि नाम में मच मच। रूप सन्मुख में हो सच सच॥

मिटै भव जाल का कच कच। हर समै जो रहा तच तच॥

ध्यान धुनि नूर लै टंच टंच। बड़ी पक्की है यह गच गच॥

करैं चोरों के संग नच नच। तो तन भाले चलैं खच खच॥

रुधिर निकलै उठै भच भच। कपैं तन दुःख से तंह हच हच।६।