९८ ॥ श्री गुलाब जान जी ॥
पद:-
होती धुनी है रोम रोम ते रकार की।
सन्मुख में राम सीता छवि क्या सिंगार की।
अद्भुत उदार जोड़ी दानी उदार की।
तारे अनन्त पापी जग जस पसार की।
क्या ध्यान नूर लै हो कर्मो कि छार की।५।
सुर मुनि भि देत दर्शन वाणी है प्यार की।
सतगुरु करो भजो तो सब ने पुकार की।
जै जै गुलाब जान कह जिन भव से पार की।८।
शेर:-
सतगुरु वचन पै चलना बरछी की नोक है।
गर हो गया संभलना तो सत्य लोक है।१।
कहती गुलाब जान मन तो ठीक जो कहै।
आपस में कर के बैठा बेकार फोंक है।२।