९९ ॥ श्री सरीफ़ जान जी ॥
पद:-
होती धुनी है रोम रोम ते रकार की।
सन्मुख में झांकी राधे औ नन्द कुमार की।१।
बरनन करूं मैं कैसे दोनों सिंगार की।
वाणी तो हार बैठी अहिफन हजार की।२।
क्या ध्यान नूर लै हो कर्मों कि छार की।
सुर मुनि हैं देत दर्शन भव जियति पार की।३।
अनहद मधुर बजै घट क्या तान प्यार की।
सतगुरु की बोलो जै जै जिन सब संभार की।४।
शेर:-
सतगुरु वचन पै चलना छूरे कि धार है।
गर हो गया ठहेरना भव से किनार है।१।