११७ ॥ श्री लाला रामदयाल जी ॥
पद:-
छटा शिंगार छवि देखो राधिका श्याम आवत हैं।
अधर पर धरि सुघर मुरली में स्वर भरि राग गावत हैं।
नाम में नेह तन मन जोरि कै जे जन लगावत हैं।
ध्यान धुनि नूर लै पाकर सामने रूप छावत हैं।
देव मुनि आय दें दर्शन हरषि गोदी उठावत हैं।५।
रहे जब तक जगत में तन सदा सुख से बितावत हैं।
अंत तन तजि के हरि पुर ले फेरि जग में न धावत हैं।
करो मुरशिद लखौ जियतै वही करतल करावत हैं।
नहीं तो अंत हो दोजख बदन सब कीड़े खावत हैं।
सड़ौ कल्पों सहौ दुःख को इसी विधि वहँ भोगावत हैं।१०।
भोग जब जाय पूरा ह्वै फेरि यहँ पर पठावत हैं।
विनय नर नारि गर मानो भजो हरि हम चेतावत हैं।१२।