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११८ ॥ श्री बीबी जी ॥


पद:-

श्याम श्यामा की क्या जोड़ी मनोहर देख पड़ती है।

करै मुरशिद लखै हर दम नेकहूँ फिर न टरती है।

ध्यान धुनि नूर लै पाकर कर्म शुभ अशुभ जरती है।

बलैयाँ देव मुनि लेवैं जियत में जौन मरती है।

दीनता शान्ति से तब फिर भिखारिन को सुधरती है।५।

आर्ति होवै लहै भिक्षा इसी हित जग विचरती है।

सुरति को शब्द पर धरि कै संग में मन को ठरती है।

कहैं बीबी वही तन तजि अचल पुर वास करती है।८।