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१३९ ॥ श्री कर्मा माई का कीरतन ॥

दोहा:-

कर्मा कह हरि को भजो, तब पावो विश्राम।

नाही तो जन्मो मरौ, विरथा है नर चाम॥

 

पद:-

हे हरि अगम हे हरि अकथ हे हरि अकह हे हरि अलख।

हे हरि चटक हे हरि मटक हे हरि लटक हे हरि खटक।

हे हरि झटक हे हरि भटक हे हरि घटक हे हरि सटक।

हे हरि अटक हे हरि कटक हे हरि पटक हे हरि छिटक।

हे हरि लपक हे हरि झपक हे हरि गपक हे हरि सपक।५।

 

हे हरि थपक हे हरि छपक हे हरि चमक हे हरि छमक।

हे हरि गमक हे हरि धमक हे हरि रमक हे हरि जमक।

हे हरि सजक हे हरि सिसुक हे हरि मसक हे हरि हंसक।

हे हरि ठसक हे हरि भसक हे हरि खसक हे हरि चसक।

हे हरि अगुन हे हरि सगुन हे हरि सुगम हे हरि मगन।१०।

 

हे हरि भनत हे हरि सुनत हे हरि भगत हे हरि जगत।

हे हरि अजर हे हरि अमर हे हरि अटल हे हरि अघट।१२।

 

दोहा:-

कर्मा कह सब कछु हरी, सतगुरु करि लो जान।

हर दम सन्मुख में लखौ, सुनो नाम की तान॥