१४२ ॥ श्री लाला गनेशी लाल जी ॥
पद:-
हरि इन चोरन को समुझावो।
हर दम हमको दुःख यह देते किस विधि शरन में आवो।
सुमिरन पाठ कीरतन पूजन आप चहौ करवावो।
करुणा सागर सब गुण आगर चाकर मोहिं बनावो।
पतित पुनीत करत प्रभु आपै सुर मुनि सब गुण गावो।५।
वेद शास्त्र नित स्तुति करते त्रिभुवन में यश छावो।
सतगुरु देहु मिलाय प्राण पति अब मति देर लगावो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छावो।८।