१४३ ॥ श्री लाला मंगली प्रसाद जी ॥
पद:-
भक्तन के भाल में चन्दन घिसि करते सरकार झगरि कै हो।१।
धरि बाल रूप दुलरावैं, कर से कर पकरि बिठावैं,
दौरैं संग खूब उछरते हैं। सरकार०॥
दोनों कर गले में लाई पीछे से देत गिराई
सीने पर आसन करते हैं। सरकार०॥
कबहूँ सयान बनि जावै हाथन पै लै हलरावै
तन मन में आनन्द भरते हैं। सरकार०॥
बूढ़े बनि कबहूँ आवैं मुख चूमै हिये लगावैं
तन फूँक डारि कै झरते हैं। सरकार०।५।
भक्तन की रुचि पहिचानै वैसै चट कारज ठानै
हर दम सँग से नहिं टरते हैं। सरकार०॥
सतगुरु करि खेलौ संग में चाहे घर द्वारे वन मग में
भव जाल से वही उबरते हैं। सरकार०॥
मंगली प्रसाद सुनावै नाना विधि खेल दिखावैं
ऐसे नित आप सुधरते हैं। सरकार०।८।