१५३ ॥ श्री लियाकत हुसेन जी ॥ शेर:- बिना सुमिरन के तन विरथा, एक दिन चलि बसै चिटका। समझ लो इस से ज्यादा दिन, रहैं हंड़ियो के जग सिटका॥