१७१ ॥ श्री लाला अर्जुन लाल जी ॥
पद:-
अपन बल छोड़ो सब जन भाई।
सतगुरु बल उर धरि हरि सुमिरो तन मन प्रेम लगाई।
नाम क रंग चढ़ै तब सुख हो रग रोवन धुनि छाई।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै सन्मुख सिय रघुराई।
जियतै नर तन का फल पावो सुर मुनि लें उर लाई।
अर्जुन लाल कहैं मम बानी मानै सो बनि जाई।६।