१८० ॥ श्री मुनियां माई जी ॥
पद:-
मन तुम बड़े चलाक भगैया।
सरिता सागर वन गिरि ऊपर पल में पहुँचि जवैया।
बल अतौल तुम्हरे तन में है कबहूँ नहीं थकैया।
अगणित जन्म मरत औ जन्मत बीते सुनिये भैया।
तुम चाहौ तो बन्धन छूटैं बैठो छोड़ि कुदैया।५।
सतगुरु करि हम तुम मिलि सुमिरैं राम नाम सुख दैया।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय अनहद सुनै बधैया।
शक्ति नागिनी चक्र कमल औ सुर मुनि लखि सुख पैया।
सीता राम राधिका मोहन सन्मुख रहैं सदैया।
उत्पति पालन परलय करतल सब के पितु औ मैय्या।१०।
शान्ति दीनता प्रेम सत्यता ते सब ठीक लगैया।
अन्त समय साकेत में बैठे सिंहासन छवि छैया।१२।