१८४ ॥ श्री पुनिया माई जी ॥
पद:-
बहुत दूर जाना नही पास धन है।
मिलै किमि ठेकाना विलग तन से मन है।
असुरों क दल बड़ा है कोइ शूर ही अड़ा है।
जिसके शब्द गड़ा है हरि धाम सों जड़ा है।
तन मन जियत गढ़ा है सो सिखर पर चढ़ा है।
मुरशिद से जो पढ़ा है सो जीति कै बढ़ा है।६।