२५५ ॥ श्री खौरी माई भाँड़िन जी ॥
पद:-
शरन होना कठिन जानो सुनै श्रोता कहैं वक्ता।
प्राण का लोभ जो त्यागै वही तो शरण हो सक्ता।
काम शुभ आ पड़ै कोई करै फिरि नहिं खड़ा तक्ता।
कृपा सतगुरु कि हो उस पर लोक सब पास ही लख्ता।
ध्यान धुनि नूर लय पावै रूप सन्मुख में लख पड़ता।५।
देव मुनि आय दें दर्शन सुनै अनहद अमी चखता।
दृष्टि सम जाय निर्भय ह्वै इधर औ उधर नहिं तक्ता।
अन्त तन छोड़ि कह खौरी कभी जग में नहीं पड़ता।८।
शेर:-
अजब कुदरत खुदा की है, करो सतगुरु तो कछु जानो।
ये रीती तो सदा की है, कहै खौरी वचन मानो।१॥