२५६ ॥ श्री अलवदी माई वेहनिन जी ॥
पद:-
धुनिये राम नाम दिन रतिया।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानौ बाजै हर दम तँतिया।
सिया राम प्रिय श्याम हमेशा सन्मुख सखा औ सखिया।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै भूलि जाय सब बतिया।
सुर मुनि दर्शैं अनहद बाजैं सुनि सुनि तन मन लसिया।५।
कुण्डलिनी माता जगि जावै षट चक्कर सुधै हँसिया।
सातौं कमल खिलैं तब जानौ उड़ै विचित्र सुवसिया।
कर्म शुभाशुभ का हत होवै प्रगटै ब्रह्म कि अगिया।
तन मन प्रेम से जो कोइ ध्यावै सबै पदारथ पसिया।
नाहीं तो फिरि अन्त नर्क में शिर धुनि रोवै कसिया।१०।
नेकौ दया करैं नहिं जम गण तूरैं सब तन नसिया।
या से मानौ कहा हमारा विनय करैं अलवदिया।१२।