२९४ ॥ श्री वाला दीन संग तराश जी ॥
पद:-
तन में डाकू पांच हैं दोषी।
शुभ कारज में विघन लगावत मारत बर्छी चोखी।
मन को इन काबू करि लीन्हेव केहि विधि तेहि पर तोषी।
अधरम ही ये भोजन करते भरत न इनकी कोषी।
सतगुरु देव मिलाय श्री हरि पकरि इन्हैं हम जोखी।५।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय में सुधि बुधि को भोखी।
हर दम राम जानकी सन्मुख तब तो हो सन्तोषी।
वालादीन कहैं जियतै में मिटि जावै सब धोखी।८।