साईट में खोजें

३२१ ॥ श्री इश्क जान जी ॥


पद:-

मुहम्मद साहब मुस्तफ़ा पैग़म्बर का आदेश है।

जब तक रहम दिल में नहीं तब तक न वह दरवेश है।

छूटै दुई तब जान ले रव हर जगह में पेश है।

जिसके तन मन पर चढ़ा नहि राम रँग का लेश है।

उसने झूठा ही धरा मानो फकीरी भेष है।५।

धुनि ध्यान लय परकाश बिनु छूटत न भव की ठेस है।

यम अन्त में उसको पकड़ ले जात अपने देश हैं।

बेदर्द ठोकैं बस नहीं कछु फिर चलाते केस हैं।

इजलास पर हाजिर करैं कागज़ लखै शुभ रेस है।

देखैं पकरि के मुख को तब जैसे कि अश्व के नेश हैं।१०।

थूकैं कहैं हा तन वशर खोये जो कीमत वेश हैं।

मुरशिद बिना दोज़ख में सड़ पाये न तू उपदेश है।१२।


शेर:-

कहती है इश्क जान इश्क बिन न रव मिलै।

जब इश्क में तुम चूर हो तब सामने खिलै।१।