४६९ ॥ श्री ककूलत शाह जी ॥
दोहा:-
चोर न चोरी कर सकै भूप सकै नहि छीन।
राम नाम अन्मोल है मिलै होय जब दीन।
कहैं ककूलत आय जग भज्यौ न सिया रघुराय।
अन्त समय पछताईहौ जब यम लेयं उठाय।२।
पद:-
नाटक रहस घट में लखौ सतगुरु करौ लूटौ मज़ा।
यहं पर तो है रहना नहीं यक दिन उठा लेगी कज़ा।
कल्पों पड़ो चलि नर्क में जहं हर समय भारी सज़ा।
कोष पासै में तुम्हारे है तहां अति धन गंजा।
निर्भय जो हो खोलै उसे है द्वैत का ढक्कन रँजा।५।
तन मन की करके एकता सारे असुर दीजै भजा।
डरपोंक किमि पावैं दखल है फौज की मालिक अजा।
पांच उसके मूँह लगे हैं पकड़ि दै आँखैं अंजा।
कहते ककूलत शाह यारों जियत इहाँ जो ले भंजा।
वही भव से पार हो पितु मातु शिर धर दें पंजा।१०।