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४७८ ॥ श्री घोंघा बसन्त जी ॥


दोहा:-

दया धर्म जिनमे नहीं वै हैं पागल श्वान।

मिलै जवन काटैं उसै पाप कमात महान।१।

यहां पै खूब बटोरि कै दीन्हीं खोल दुकान।

तन तजि नर्क में सहैं दुख कोई सुनै न कान।२।

घोंघा बसन्त की विनय यह दया धर्म मति त्यागु।

या से शुभ कारज सरैं तन तजि हरि पुर भागु।३।