४७९ ॥ श्री ठाकुर राम सिंह वैश्य जी ॥
पद:-
जे जन जाय बृज में बसैं।
जाप विधि सतगुरु से लैकर असुर तन के कसैं।
ध्यान धुनि परकाश लय हो जियति भव दुख चसैं।
श्याम श्यामा गोप सखियां सदा सन्मुख हंसै।
देव मुनि सब दर्श देवैं प्रेम करि उर लसैं।५।
साज अनहद सुनैं घट में चखैं अमृत रसैं।
विश्वास शान्ति औ दीनता गहि जौन यहि मग फंसैं।
त्यागि तन ते जांय निजपुर फिर न जग में खसैं।८।