४९१ ॥ श्री ललिता नाऊ विलोरिया ॥
पद:-
बचायो भाई निज धन है हरि नाम।
डाकू पांच रहत हैं तन में घात करत वसुयाम।
सम्हरा रहे हर समय जो जन ता से हो बेकाम।
लूटि न सकैं निराश जाय ह्वै जैसे नर बिन बाम।
ऐसी जगह बनाये बैठे ढंूढे मिलत न ठाम।५।
सतगुरु करो भेद जब पावो इन्हैं सकौ तब थाम।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय सनमुख सीताराम।
सुर मुनि मिलैं सुनो नित अनहद सुफल जियति हो चाम।
आशीरबाद श्राप को त्यागो या से तब हो खाम।
तिरगुन से बिन व्यार भये कोई पावत नहिं सुखधाम।१०।