५०१ ॥ श्री डग मग शाह जी ॥
पद:-
मुरशिद करो हरि को भजो नाहीं तो अन्त में फेल हो।
यमदूत पीटैं बेदर्द निकसैगो नीचे वेल हो।
जाय लै पेशी करावैं देंयगे फिर जेल हो।
नेकी बदी संग में चलै चौथा सकत नहिं पेल हो।
या से सखुन मानो मेरा बनि जाव इहां अकेल हो।५।
शब्द को सूरति को दो तब जीव ब्रह्म का मेल हो।
ध्यान धुनि लय नूर पा सुर मुनि के संघ में खेल हो।
अनहद सुनो निर्भय बनो जियतै में भव दुख झेल हो।
फिर क्या करै कोई तुम्हारा जब खजाना रेल हो।
डग मग कहैं तन त्यागि चलिये अचलपुर सुख से लहो।१०।
पद:-
विहंसि हरि भक्तन संघ दुलरावैं।
मुख चूमैं गोफा गले डालैं फिर उर में चपटावैं।
निशि में आय लखैं जब सोवत गुदगुदाई उचकावैं।३।
डग मग कहैं भजो मुरशिद करि तव सन्मुख छवि छावैं।४।
पद:-
क्या जाति पांति का भेद तजा सब संग उमंग से खाते हैं।
कोई ब्राह्मण है कोई क्षत्री हैं कोई वैश्य, शूद्र कहलाते हैं।
ते मुसलमान अंगरेज़ों के होटलों में जाकर पाते हैं।
जरदा पुलाव बिस्कुट कबाब कुछ किमाम भी खाते हैं।
तन्दुरी रोटी दाल भात मछली के पकौड़े आते हैं।५।
अन्डों के बरे कहैं लावो कछु मीठे चावल भाते हैं।
कोई नान पाव औ शीर माल कछु दाल मोठ गोहराते हैं।
कोई नेबू रस अदरख पियाज मूली औ नमक मिलाते हैं।
कोई दही बरे कोई कहैं खुश्क कोई खट्टे मीठे पाते हैं।
कोई साग कड़ू औ रसेदार बिन कहते मजे न आते हैं।१०।
कोई सोडा पानी मांगि रहे कोई दाल को कड़ू बताते हैं।
कोई ठन्डा पानी मांगि रहे कोई ताजा तुरत भराते हैं।
कोई मुर्ग गोश्त कोई गाय गोश्त कोई भैंस गोश्त रखवाते हैं।
बकरे का गोश्त कहैं रक्खौ कछु मेंढा का बतलाते हैं।
ताज़ी चटनी औ नमक मिर्च लैकर फिर चाट लगाते हैं।१५।
हंसि हंसि के स्वाद बयान करैं नहीं शर्म ज़रा मन लाते हैं।
सूजा चाकू चिम्मच कैंची मोचनों से दांव चलाते हैं।
लन्डन के गोश्त में जो कीड़े मोचनों से मुख में लाते हैं।
जब दाढ़ों से उनको दावैं मरि जांय निगल तब जाते हैं।
तारीफ़ करैं ऐसी ताकत की चीज कहां कोई पाते हैं।२०।
अण्डे मुर्गी के कच्चे भी कोई फोरि के मुख में नाते हैं।
कोई दूध मिला करके पीवैं कहैं ताक़त खूब बढ़ाते हैं।
जा वजा धरे बिजुली पंखे जो हवा खूब लहराते हैं।
कोई बटन कोट को खोलि दिया कोई सर से हैट हटाते हैं।
खा पी कर के दें नोट कहैं लो जलदी जी हम जाते हैं।२५।
बकरे का गोश्त चुरा करके कोई उस का रस निकलाते हैं।
फिर उस में चीनी दूध मिला कर बरतन में भरवाते हैं।
जावित्री जयफर जाफरान तज पत्रज लौंग ढिलाते हैं।
गोल मिर्च इलायची खुर्द कलां पिसवा कर फिर मिलवाते हैं।
कुरसी पर चारों तरफ़ डटैं फिर प्याले भर भर आते हैं।३०।
फिर घूंट घूंट धीरे धीरे पी कर के सब मुसकाते हैं।
कोई बन्दकों से जीव वधैं हा जरा रहम नहिं लाते हैं।
खरगोश हिरन चिड़ियां ग़रीब जा कर के मार गिराते हैं।
फिर उनको उठवा ले आवैं दै हुक्म साफ करवाते हैं।
खुर पंख पंज ओझरी आंतैं खाल आंखै चोंच फेंकाते हैं।३५।
सोगों को कहते रहने दो कमरों में उन्हें जड़ाते हैं।
गर खाल हिरन की चित चाहा सो सुखवा कर पकवाते हैं।
जारी........