५०१ ॥ श्री डग मग शाह जी ॥
जारी........
फिर उसके जूते औ बेगैं थैले बटुवे सिलवाते हैं।
छूरी से गोश्त के टुकड़े करवा बनवा कर फिर खाते हैं।
कोई दोस्तों के हित भेजवावैं खत लिख कर कुली पठाते हैं।४०।
कहैं जवाब जलदी ले आना हम हुक्म यही फरमाते हैं।
वे कुली सितावी से पहुँचैं दै गोश्त जवाब लै आते हैं।
कोई घर में नित खाने के हित बकरों के गले कटाते हैं।
कोई मछली ही घर में मंगवा कर तर औ खुश्क भुनाते हैं।
पी कर शराब जब नशे में हों तब मन मानै सो गाते हैं।४५।
कोई दावत आपस में करते दिन रात को धूम मचाते हैं।
तहं जाय जाय कर नर नारी खा खा कर वाह सुनाते हैं।
फिर सिगरेट पान तमाकू लै फूकैं औ धुआं उड़ाते हैं।
तजि नमशकार परनाम दियो क्या हाथ में हाथ मिलाते हैं।
अपनी अपनी औरतों को लै फिर सैर कराने जाते हैं।५०।
बाजारों में कोई घूमि रहे कर से कर गहि बतलाते हैं।
कोई सौदा हाथ में ले कर के फिर उसका मोल कराते हैं।
जब मोल बतावैं सौदागर तब औरत को दिखलाते हैं।
कहते हैं पसन्द तुम्हारे हो तो इसका दाम चुकाते हैं।
गर हो पसन्द तो लै लीजै वरना हम इसे घुमाते हैं।५५।
यह नाटक होते दुनियां में हम सांच तुम्हैं लिखवाते हैं।
यह खान पान व ऐश बुरे इनसे सब बिगड़े जाते हैं।
इन में रज तम का ज़ोर बड़ा कुल में हा दाग लगाते हैं।
रण्डी लौंडे परनारिन संग फंस कर नित पाप कमाते हैं।
तन छोड़ि नर्क में जाय पड़ैं कल्पों तहं दुःख उठाते हैं।६०।
अबहीं कुछ चेति नहीं करते जियतै यम हाथ बिकाते हैं।
है सब से अर्ज यही मेरी जे मानैं ते सुख पाते हैं।
सब छोड़ि सतो गुण पर आवैं मुरशिद करि पाप जलाते हैं।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि लहैं सिया राम सामने छाते हैं।
सुर मुनि सब के नित हों दर्शन अनहद सुनि हिय हर्षाते हैं।६५।
तन त्यागि वतन को हो रुखसत फिर गर्भ वास नहिं पाते हैं।
अब चन्द रोज़ के बाद सुनो यह शौक इहां से जाते हैं।
फिर आगे धरम ध्वजा फहरै यह सुर मुनि नित बतलाते हैं।
कहैं डग मग शाह सुनो भाई हमहूँ नित यही मनाते हैं।
मेरा भारत देश सुधर जावै जो सब के गुरु कहाते हैं।७०।
पद:-
सिया राम की झांकी लखौ संग बैठि तीनो भ्रात हैं।
छटा छवि श्रंगार अद्भुत अजब कोमल गात हैं।
दीन बन्धु दया के निधि भक्तन के हाथ बिकातु हैं।
मुरशिद करो पावो पता तब सामने ठहरात हैं।
धुनि ध्यान लय परकाश हो सुर मुनि भि संग बतलात हैं।५।
अनहद की तान मधुर सुनो एक तार जो न सिरात हैं।
डग मग कहैं तन तजि चलौ साकेत जहं पितु मातु हैं।७।
पद:-
चरखी डोरि पतंग उठाय के चारों कुँवर सफ़र में जावैं।
सखा जाय आगे सब बैठैं निज निज करन पतंग उड़ावैं।
मलया गिर चन्दन की चरखी देंय सुगन्ध उमंगैं आवैं।
श्री वशिष्ट जी की बनवाई ठीक भेद हम तुम्हें बतावैं।
डोरी विधि हरि शिव की दीन्हीं टूटि न सकै दिब्य कहलावैं।५।
उमा रमा शारद जी लाय कै दीन पतंगें मन ललचावै।
नेको फटैं न मैली होवैं वैसे चम चम चम चमकावैं।
मांझा जवन लगा है उनमें जब कटि जाय सुमन्त बनावैं।
पानी फल का आटा घोरि कै आगी पर तेहि खूब चुरावैं।
ता में हीरा शुक्ल पीस कै छोड़ि उतारि फेरि ठण्ढावैं।१०।
तब फिर सूत की रस्सी बंटि के तामे वाको लेप लगावैं।
जारी........