५०१ ॥ श्री डग मग शाह जी ॥
जारी........
लेंय सुखाय फेरि घामे में यह मांझा बढ़िया कहवावै।
कटैं पतंगे सुर मुनि लूटैं नीचे एक गिरन नहिं पावैं।
आय आय सब देंय जमा करि लखि लखि पुरवासी हर्षावैं।
श्री वशिष्ट जी श्री दशरथ जी बैठे तहं पर हिय हुलसावैं।१५।
गद गद कण्ठ रोम सब पुलकैं नेको मुख से बोलि न पावैं।
यह लीला मुरशिद करि देखौ जो कोई सूरति शब्द लगावैं।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि वा के सब करतल ह्वै जावैं।
अन्त त्यागि तन लेय अचलपुर गर्भ वास में फिर नहिं आवैं।
डग मग शाह कहैं यह नर तन है अनमोल जो राह को पावैं।२०।
पद:-
राम रंग नील नील श्याम रंग नील नील।
विष्णु रंग नील नील अद्भुद छवि छाई।
सिया रंग गौरपीत राधे रंग गौरपीत कमला रंग गौरपीत
अति ही सुखदाई।
मुरशिद से जानि नाम सुमिरै जो अष्टयाम पावै सो ठीक
ठाम दर्शै सब आई।
ध्यान धुनि नूर पाय लय में सुधि बुधि भुलाय उतरै फिर आय जाय
तन में हर्षाई।
सुर मुनि का सुनै गान अनहद की उठै तान छूटै सब सान मान
निर्भय ह्वै जाई।
डग मग कहैं धरै धीर सोई हो शूर वीर दुर्लभ यह नर शरीर
मानो सच भाई।७।
शेर:-
मीटिंग स्पीच करते भूखों को नहिं खिलाते।
कहते हैं डग मग तन तजि दोजख़ में वास पाते।१।
कानों से हुये बहिरे आंखों से हुये अन्ध।
डग मग कहैं मुरशिद बिना हा सूंघते दुर्गन्ध।२।
पद:-
सइयां तेरी पइयां परूँ बहियां मति तोर।
अपनी कहंत न सुनत मोरी एकौ बरजारी कर दीन्हीं बहियां झिझकोर।
दुध दही माखन सब लूटत छोड़त नहि किहे शोर।
तन मन ते हम तुमको चाहैं ऊपर ते कुल कानि निबाहैं
हौ सब के चित चोर।
उतपति पालन सब तव करतल बाजत नन्द किशोर।५।
दोऊ कर जोरे विनय करैं सखी नयनन टपकै लोर।
प्रेमातुर हरि देखि सखी को फैरयौ नैन की कोर।
डग मग कहैं हुये चट अन्तर लीन्हों सुधि बुधि छोर।८।
पद:-
खबरिया लेहैं रामै श्याम।
मुरशिद करि दरवाजा पकड़ौ पूरन हों सब काम।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सुनिये आठोंयाम।
तब फिर आय सामने राजैं सुन्दर शोभा धाम।
डग मग शाह कहैं जियतै यह सुफ़ल होय नर चाम।
अन्त समय तन त्यागि अचलपुर बैठि करौ विश्राम।६।
पद:-
भजु नित राम श्याम के नाम।
जाप विधि मुरशिद से लै कर सारि ले निज काम।
ध्यान धुनि परकाश लय हो जहां वायु न घाम।
सामने सुखमा भवन दोऊ निरखु आठौ याम।
देव मुनि सब आय तोसे करैं नित प्रनाम।
साह डग मग कहैं तन तजि पाव अचल मुकाम।६।
पद:-
लड़के लड़की स्कूलों में पढ़ि निज निज धर्म को त्यागि किया।१।
स्कूल नहीं यह सूल तूल हा मूल हमारी छीन लिया।२।
भगवान वह दिन जलदी आवैं यह भारत से उठी जाय छिया।३।
डग मग कह घर घर हरि कीरतन का चौमुख फिर जल जाय दिया।४।
पद:-
लखौ किमि सन्मुख सीता राम।
मन शूकर विष्ठा पर दौरत सकत नहिं तेहि थाम।
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