५११ ॥ श्री परमानन्द जी वैश्य ॥
पद:-
राम कृष्ण विष्णु देव सुर मुनि हैं सोई।
जो सन्मुख में आय प्रेम बेलि देंय बोई।
ध्यान धुनि प्रकाश जाय लय में सुधि खोई।
अनहद की मधुर तान सुन सुन सुख होई।
सूरति को शब्द बांधि तन मन दे धोई।५।
आपै सब आय जायं परिचय करि टोई।
जियतै जो जानि लेय सो न गर्भ रोई।
सतगुरु की शरन बिना पावत नहिं कोई।८।