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५१३ ॥ श्री लम्पट शाह जी ॥


पद:-

मन से बचन से कर्म से सतगुरु सरन जे जातु हैं।

धुनि ध्यान लय परकाश पा सुर मुनि के सघं बतलात हैं ।

सन्मुख में सीता राम छवि अनहद सुनैं मुसक्यात हैं ।

निर्वैर निर्भय जियत ह्वै कौसर चखैं हुलसात हैं।

सुकृत जिनके हैं बड़े यहि मार्ग ते ठहरात हैं।

लम्पट कहैं तन से बिदा ह्वै जायं जहं पितु मातु हैं।७।