५१४ ॥ श्री बटपार शाह जी ॥
पद:-
भजो प्रिय श्याम को एक तार।
मुरशिद करि सुमिरन बिधि जानो खुलि जाय धुनि रंकार।
ध्यान समाधि होय तब करतल छाय जाय उजियार।
सुर मुनि आवैं हिये लगावैं मुख चूमै करि प्यार।
दरवाजे पर नौबत बाजै सुनिये क्या गुमकार।५।
सन्मुख मातु पिता छवि छावैं टरै न फिर निशि वार।
को वरनै छवि विश्व के स्वामी शोभा अजब सिंगार।
वटपार शाह कहैं तन जब छूटै पास में लेयं बिठार।८।