५१६ ॥ श्री डाकू शाह जी ॥
पद:-
तन मन लगा सतगुरु से जप विधि जान कर जो ध्यावता।
धुनि ध्यान लय परकाश पा सन्मुख में प्रभु छवि छावता।
अनहद सुनै सुर मुनि मिलैं दरबार में नित जावता।
प्रेम में जब मौज हो हरि का बिमल यश गावता।
समता रहे सब में सदा नहिं द्वैत मन में लावता।
डाकू कहैं तन छोड़ि बैठक अचलपुर में पावता।६।