साईट में खोजें

५१८ ॥ श्री छिछोर शाह जी ॥


पद:-

पढ़ि सुनि लिखि न पैहौ हरि हरि हरि।

सतगुरु करि सुमिरन विधि लीजै कर्म जांय दोऊ जरि जरि जरि।

ध्यान धुनि परकाश दसा लय पाय जियति जाव तरि तरि तरि।

अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं पिऔ अमी तन भरि भरि भरि।

काल मृत्यु माया औ यम गण भागै लखि तुम्हैं डरि डरि डरि।

कहैं छिछोर शाह तन छोड़ि के बैठो निज पुर सरि सरि सरि।६।