५२३ ॥ श्री छटंकी माई जी ॥
पद:-
लीजै राम नाम की सूजी।
सियै की गौं सतगुरु करि सीखो जमा होय तब पूँजी।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन में गूंजी।
अनहद सुनो मिलैं सुर मुनि सब कर्म जियत जांय भूँजी।
तब निज धन दीनन को देना कभी न बनना मूँजी।
कहैं छटंकी अन्त अचलपुर छूटि जाय सब रुजी।६।