५३६ ॥ श्री हबीबा जी रण्डी ॥
पद:-
हरि सुमिरन करि लेहु मजे में।
सतगुरु करि जप की विधि जानो सूरति शब्द पै देहु मजे में।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन सुनि लेहु मजे में।
सुर मुनि आवैं हंसि उर लावैं अनुपम अमृत पिअहु मजे में।
अनहद सुनौ बजै घट हरदम सन्मुख सिय प्रभू लेहु मजे में।
अन्त त्यागि तन कहैं हबीबा चलि लीजै निज गेहु मजे में।६।