५६१ ॥ श्री दुखिया माई जी ॥
पद:-
सतगुरु करि लो नाम की बल्ली। तन किस्ती तब पावै गल्ली।
खेय जाव निज पुर में हल्ली। तब तो बहिनो होय तसल्ली।
ध्यान नूर लय धुनि में चल्ली। तब टूटी द्वैत की पल्ली।
सन्मुख श्यामा श्याम अड़ल्ली। सुर मुनि हरि यश कहैं सुनल्ली।
निर्भय औ निर्वैर रहल्ली। तन मन प्रेम के रंग रँगल्ली।
मान अपमान औ ऊँचा खल्ली। सम समझै सो दोउ दिशि भल्ली।६।