५६६ ॥ श्री सुखी राम जी रसिक ॥
(मिथिलाबासी, शिष्य श्री स्वामी रामानन्द जी)
पद:-
सतगुरु करो पावो पता किसको रसिक कहते हैं जी।
परकाश ध्यान समाधि पा जे नाम धुनि सुनते हैं जी।
अनहद मधुर घट में बजै अमृत सदा चखते हैं जी।
सुर मुनि मिलैं हरि यश कहैं कर प्यार उर लसते हैं जी।
मान औ अपमान त्यागा दीन बनि रहते हैं जी।५।
भाव समता का हमेशा अपने मन रखते हैं जी।
राम सीता की छटा सन्मुख लखा करते हैं जी।
सुखी राम कह तन छोड़ि चलि साकेत में बसते हैं जी।८।